रायगढ़। आने वाले पांच सालों में कोयला परिवहन का पूरा सिस्टम बदलने वाला है। अब रोड परिवहन को पूरी तरह बंद कर केवल रेल मोड ही चलेगा। 2030 तक इसे 100 प्रश करने का लक्ष्य है। रोड के जरिए केवल पास के उद्योगों को कोयला भेजा जाएगा। माइंस से सटे प्लांटों में कन्वेयर बेल्ट लगाना पड़ेगा। रायगढ़ में सैकड़ों ट्रेलर मालिकों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। रायगढ़ में कोयला उत्पादन के साथ परिवहन भी बहुत बड़ा उद्योग है। सैकड़ों परिवार हैं जो कोयला परिवहन कारोबार के सहारे चल रहे हैं। अब इस कारोबार पर संकट आ सकता है।
केंद्र सरकार ने 2030 तक सभी कोयला खदानों को रेल नेटवर्क से जोडऩे की डेडलाइन दी है। माइंस से कोयला रैक के जरिए एंड यूज प्लांट तक पहुंचाना है। कोल इंडिया के अलावा सभी प्राइवेट कंपनियों को इसका पालन करना होगा। रोड के जरिए दूर तक कोयला परिवहन नहीं किया जा सकेगा। रायगढ़ जिले में आने वाले सालों में करीब 8 नई खदानें प्रारंभ हो जाएंगी। इसीलिए कोयला परिवहन के लिए ईस्ट रेल कॉरीडोर बिछाई जा रही है। अब इस कॉरीडोर को कोरबा से जोड़ते हुए एक सर्कल बनाया जा रहा है।
इसके अलावा तमनार, घरघोड़ा और धरमजयगढ़ में रेलवे साइडिंग भी बनाई जा रही है। 2030 के बाद किसी भी कंपनी को रोड के जरिए कोयला ले जाने की अनुमति नहीं होगी। आने वाले 5 साल में धरमजयगढ़ और तमनार में ही करीब 8 नई खदानें शुरू होंगी। इसके बाद रायगढ़ एरिया में एसईसीएल को मिलाकर 100 मिलियन टन से अधिक कोयला उत्पादन हो जाएगा। केवल एसईसीएल ही 50 मिलियन टन प्रतिवर्ष से अधिक कोयला उत्पादन करेगा।
वर्तमान में एसईसीएल का करीब 70 प्रश कोयला रेल मोड से जा रहा है। बाकी का 30 प्रश ही रोड सेल है। 2030 तक यह भी रेल मोड से हो जाएगा। रायगढ़ जिले में स्थित छोटे प्लांटों तक कोयला रोड के जरिए पहुंचाने की मजबूरी है। लेकिन प्राइवेट कंपनियों को अपनी माइंस से कोयला रेल नेटवर्क के जरिए ही भेजना पड़ेगा। कर्नाटका, महाराष्ट्र, राजस्थान, मप्र, राजस्थान, गुजरात आदि राज्यों को कोयला रेल से भेजा जाएगा। एनटीपीसी भी रैक के जरिए ही कोयला भेज रहा है। माइंस के नजदीक स्थित प्लांटों को कोयला ले जाने के लिए कन्वेयर बेल्ट बनाना होगा। सरकार किसी भी तरह से रोड सेल को खत्म करना चाहती है ताकि पर्यावरण प्रदूषण कम हो।